25 मार्च 2022, स्वतंत्रता की 75 वीं वर्षगॉठ के उपलक्ष्य में ’’आजादी का अमृत महोत्सव’’ के तहत राजकीय मीरा कन्या महाविद्यालय, उदयपुर के चित्रकला परिषद्, द्वारा आयोजित मांडना लोक कला की कार्यशाला में महाविद्यालय की छात्राओं ने केम्पस की दीवारों पर रेखाकंन के माध्यम से परम्परागत कला मांडना बनाने में अभिरूचि दिखाई।
प्राचार्य डॉ. शशि सांचिहर ने छात्राओं के सृजनात्मक कार्य की सराहना करते हुए बताया कि ऐसे सृजनात्मक कार्यक्रमों से छात्राओं का सर्वांगीण विकास होता है। साथ ही लोक परम्पराओं को भी संरक्षण मिलेगा। इस तरह के आयोजन महाविद्यालय में समय समय पर आयोजित किये जायेेंगे जिससे छात्राओं को प्रोत्साहन एव ंकला को प्रदर्शन करने का एक मंच मिलेगा। इस अवसर पर महाविद्यालय के वरिष्ठ संकाय सदस्य डॉ. नीलम सिंघल एवं डॉ. अंजना गौतम आदि ने भी छात्राओं को प्रोत्साहित किया ।
चित्रकला विभागाध्यक्ष डॉ. दीपक भारद्वाज ने बताया कि ऐसे ही कार्यक्रमों से परम्परागत कलाओं के प्रति युवापीढी में रूचि जागरूक की जा सकती है। इन छात्राओं ने इस कार्यशाला में अपनी भावनाओं को उकेरने का प्रयास किया है साथ ही एक दूसरे की कला से रूबरू होने का अवसर भी मिला।
डॉ.कहानी भानावत ने कहा कि ऐसी राजस्थान की कई लोक कलाऐं है जो सुअवसरों पर महिलाओं द्वारा ज्यामितिय आकारों में प्रतिकात्मक रूप में अंकित की जाती है उन्हें उजागर करने की आवश्यकता है। डॉ. मनीषा चौबीसा ने प्रतिभागी छात्राओं को प्रोत्साहित करते हुए कहां कि मांडना कला में दक्षता रखने वाली छात्राऐं स्वरोजगार के रूप में भी इसे अपना कर रोजगार प्राप्त कर सकती है।
चित्रकला परिषद् प्रभारी डॉ. रामसिंह भाटी, ने बताया कि इस तीन दिवसीय मांडना कार्यशाला में सभी संकाय की 46 छात्राओं ने भाग लिया। इन प्रतिभागियों द्वारा बनाई उत्कृष्ठ 15 मांडना कृतियों का चयन किया गया। सभी प्रतिभागियों को सहभागिता का प्रमाण पत्र एवं चयनित उत्कृष्ठ को पुरस्कार प्रदान किया जायेगा। उत्कृष्ठ 15 मांडना कृतियों का चयन में ललिता प्रजापत, कीर्ति सोनी,विशाखा रेगर, निधि सोमिया, सीमा बुनकार, निकिता सोनी, फातिमा रूहीवाला, हर्षिता पाटीदार, सना रहमान, मनीषा कुवर भाण्ड, निरमा धाकड़, समीक्षा नलवाया, अनुराधा बावरी, कविता राव, वनिता देवड़ा है। निर्णायक मंडल में डॉ. भावना आचार्य, डॉ. मन्जु त्रिपाठी और डॉ. श्रुति टंडन रहे। कार्यक्रम को सफल बनाने में पुष्पा मीणा, डॉ. वन्दना मेघवाल एवं डॉ. दिव्या हिरण का भी विशेष योगदान रहा।

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